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तुम्हारी कहानी ३
“वो यहीं पर है. ये उन्हीके पसंदीदा इत्र की खुशबू है.” धम्मा दादाने कहा.
“हाँ, मैंने भी यही महसूस किया. पर क्या यह संभव है?” मैंने जैसे अपने आपसे पूछा.
“क्यों नहीं? मुझे अक्सर इस बात का अहेसास होता है. हो सकता है की वो आप ही का इंतज़ार कर रही हो?” धम्मा दादाने टेबल पर व्हिस्की, सोडा, कांचका गॉब्लेट, भुने हुए काजू और किसमिसका प्लेट रखते हुए कहा.
“आपकी खातिरदारिका सारा इंतज़ाम वो खुद करके गई है.” टेबल पर सजी हुई चीजोंकी ओर इशारा करते हुए धम्मा दादाने कहा, ” ये सारी चीजें उन्होंने खुदने खरीदकर आपकी खातिरदारीके लिए राखी थी.”
तभी मेरी नज़र राइटिंग टेबल पर रखे लैपटॉप पर गई. उसके मॉनिटरके स्क्रीन पर उसकी तस्वीर बतौर वाल पेपर सेट की गयी थी : खुली ज़ुल्फ़ों वाले उसके खूबसूरत चहेरे का क्लोज़अप. उसकी बड़ी बड़ी कजरारी आँखें बहोत ही दिलकश लग रही थी. यह भी मेरी ही खींची हुई तस्वीर थी. अचानक मुझे यह अहेसास हुआ कि सारी ज़िन्दगी उसने मेरी यादमें बितायी और मैं समजता रहा की सबकुछ ठीकठाक है. तभी धम्मा दादाने मुजसे कहा, ” सा’ब, मैं नीचे ड्राइंग रूममें बैठा हूँ. अगर किसी चीज़की ज़रूरत हो तो इण्टरकॉम पर… ”
“… पांच नंबर.” अनायास मेरे मुंहसे निकल गया.
“हाँ! आपको भी सब याद है.” धम्मा दादाने कहा, “और हाँ,, आपके लिए सिगरेटभी लाकर उन्होंने वहां ड्रेसिंग टेबल के ड्रावरमें राखी है.” धम्मा दादा इतना कहकर चले गए.
उनके जानेके बाद मैंने कमरेका दरवाज़ा अंदरसे लॉक किया. एक बार फिर मैंने लैपटॉपके स्क्रीनकी ओर देखा. उसकी आँखें जैसे मेरीही ओर देख रही थी. अर्नोबने बतायाथा कि उसने कुछ विडियो लैपटॉपमे मेरे लिए लोड कर रखे थे.
“क्या होगा उन वीडियोमे?” अपने लिए ड्रिंक बनाते बनाते मैंने सोचा. उन दिनोमे हमने कुछ वीडियोस शूट किये थे. जैसे कुछ जब जंगलमे लोकेशन देखने गए तब, कुछ हम सब जब पिकनिक मनाने गए थे तब. लेकिन उन विडिओकी कॉपी मेरे पासभी थी. अभी भी उसके फ्रेंच परफ्यूमकी खुशबु कमरेमे हल्की हल्की आ रही थी. ड्रिंक लेकर मैं लैपटॉपके सामने कुर्सी पर बैठ गया. तस्वीरमेंसे वो मेरे सामने एकटक देख रही थी. अपने हाथमे रहे गॉब्लेटमेंसे मैंने एक चुस्की ली और स्क्रीन पर दिख रहे आइकॉन देखने लगा. वहां पर एक फोल्डर था जिसका नाम दिया गया था, “फॉर योर आईज ओन्ली” याने सिर्फ तुम्हारी नज़रोंके लिए. उसके ऊपर कर्सर रखकर मैंने डबल क्लिक किया तो मालुम पड़ा कि वो फोल्डर पासवर्ड प्रोटेक्टेड था.तभी मुझे उसका खत याद आया. खतमे उसने एक जगह लिखा था कि ज़रुरत पड़ने पर जंगलमे कोड ढूंढ लेना. मैं सोचमे पड़ गया. उसके साथ मैंने बहोत सारा समय जंगलमे बीताया था. हमारे बीचमे बहोत सारी बातें हुई थी. मेरे मानसमे वो सारे द्रश्य और संवाद किसी फिल्मकी तरह चलने लगे. अचानक मुझे कुछ ध्यान आया.हमारी बातचीतमें बार बार दोहराये जाने वाले अंग्रेजी भाषाके दो शब्द. ऐसे दो शब्द जो आम तौरपे बातचीत में इस्तेमाल नहीं होते है. मेरे हाथ में रहा ड्रिंकका ग्लोबलेट मैंने लैपटॉपके पास रखा और मैंने फटाफट अंग्रेजी भाषामे बोले गए वो दो शब्द एकसाथ टाइप कर दिए. मेरा अंदाज़ा सही था. फोल्डर खुल गया. उसमे सात विडियो फाइल्स और एक टेक्स्ट फाइल थी. मैंने सबसे पहले टेक्स्ट फाइल खोलने का निर्णय लिया. आखिरकार वो एक काबिल सरकारी अफसर थी, उसने ज़रूर मेरे लिए सूचनाएं लिखी होंगी. टेक्स्ट फाइल खोलकर मैंने पढना शुरू किया. उसने उसे अंग्रेजीमे लिखा था जिसका भावानुवाद मैं यहां हिन्दीमे प्रस्तुत कर रहा हूँ.
“मेरे प्रिय,
तुम यह पढ़ रहे हो इसका मतलब है तुम्हे मेरा खत मिल चुका है और तुम हमारे घर पहुँच चुके हो. सबसे पहले तो तुम्हे मिले बगैर चले जाने के लिए मैं क्षमा याचना करती हु. मैं जानती हूँ कि मुझे ऐसे नहीं जाना चाहिए था. लेकिन क्या करती? तुम्हारी इस शेरनीको पालतू बिल्लीकी ज़िन्दगी नहीं रास आ रही थी. ज्यादा क्या बताऊँ तुम्हे? तुमतो मुझे मुझसेभी ज्यादा जानते हो. इस फोल्डर में मैंने कुछ विडियो रखे है सबसे पहले तुम एक नंबरका विडियो देखोगे. उसी वीडियोमे तुम्हे दूसरा विडियो कब देखना है यह बताया गया है. इस तरह हर वीडियोमे तुम्हे क्या करना है उसकी सूचना मिल जाएगी. ऑफ़ कोर्स, मैं तुम पर हुकुम चलाना नहीं चाहती. मेरे जीवनमे आये तुम एक मात्र शख्स हो जिसके मैं अपने दिलोजानसे आधीन हुई हूँ. हमेशा मैं मेरे आकाशकी पगली बदली रही हूँ, और रहूंगी. यूँ समजो कि इन विडियो के ज़रीये मैं तुम्हारे लेखन कार्यमे सहभागी हो रही हूँ.
तुम्हारी
वाइल्ड केट”
“वाइल्ड केट” मैंने ही उसे यह नाम दिया था और उसने इसी नाम को विडियो फोल्डर का पासवर्ड बनाया था. मैंने कर्सर एक नंबर के विडियो पर रखा. मैं व्यवसायसे फिल्मकार हूँ. कंप्यूटर पर विडियो देखना मेरा रोजका काम है. पर पहलीबार ऐसा हो रहा था कि एक विडियो फाइल ओपन करते हुए मेरी उंगली कांपी हो. मुझे मालूम था कि मैं उसे अब देखूंगा. यह वास्तविकता जानने के बाद कि वो अब ईस दुनियामे नहीं है मेरे लिए उसे चलते फिरते और बोलते देखना अपनी संवेदनाओंको पूरी तरह बेकाबू करना होगा. मैंने अपने आपको संभाला और एक नंबर का विडियो फाइल डबल क्लिक किया. विडियो जैसे ही शुरू हुआ मैंने उसे फुल स्क्रीन किया. और अचानक कमरा ज़ोरदार म्यूजिक से गूंज उठा. हाई नोट्स पर बजता हुआ ब्रास और उसके बाद ड्रम, गिटार और सिंथेसाइज़र साथमे लाइव वायलिन. कमरे का माहौल बदल गया. मेरे चहेरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी. ये मेरी ही एक हिट फिल्म का टाइटल म्यूजिक था. और स्क्रीन पर सबसे पहले ब्लैक बैकग्राउंड पर लाल गुलाब हरे पत्ते और काँटों के साथ फैड इन हुआ. उसके ऊपर जिगर मुरादाबादी साहब का ये शेर लिखा था.
“गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़, काँटों से भी निबाह किये जा रहा हूँ मैं”
मेरा पसंदीदा शेर रहा है ये. ज़िन्दगी जीभर कर जीनेकी चाहत रखने वालोंके लिए ईस शेर में जीवनकी वास्तविकताका फलसफा है और जीने का अंदाज़ भी बताया गया है.
गुलाब के बाद म्यूजिक के साथ हमारे साथ साथ गुज़ारे हुए कुछ प्रसंगोंके विडियो शॉट्स एडिट करके डाले गए थे. उनमे हम दोनोंके परिवार भी शामिल थे और कुछ में हम दो ही थे, ख़ास तौर पर जो विडियो हमने जंगल में लोकेशन ढूंढने के वक्त लिए थे. मेरी आँखों के सामने वो सब पल उजागर हो गए. मेरी आँखे नम हो गयी.
म्यूजिक के अन्तमे टाइटल उभरके आया “फॉर योर आईज ओनली – ओनली योर्स मंदाकिनी” (सिर्फ तुम्हारी नज़रोंके लिए – सिर्फ तुम्हारी मंदाकिनी).
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