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तुम्हारी कहानी : ४
“गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़, काँटों से भी निबाह किये जा रहा हूँ मैं”
मेरा पसंदीदा शेर रहा है ये. ज़िन्दगी जीभर कर जीनेकी चाहत रखने वालोंके लिए ईस शेर में जीवनकी वास्तविकताका फलसफा है और जीने का अंदाज़ भी बताया गया है.
गुलाब के बाद म्यूजिक के साथ हमारे साथ साथ गुज़ारे हुए कुछ प्रसंगोंके विडियो शॉट्स एडिट करके डाले गए थे. उनमे हम दोनोंके परिवार भी शामिल थे और कुछ में हम दो ही थे, ख़ास तौर पर जो विडियो हमने जंगल में लोकेशन ढूंढने के वक्त लिए थे. मेरी आँखों के सामने वो सब पल उजागर हो गए. मेरी आँखे नम हो गयी.
म्यूजिक के अन्तमे टाइटल उभरके आया “फॉर योर आईज ओनली – ओनली योर्स मंदाकिनी” (सिर्फ तुम्हारी नज़रोंके लिए – सिर्फ तुम्हारी मंदाकिनी).
एन्ड टाइटल के फेड आउट होते ही वो परदे पर फेड इन हुई, इसी मकानके गार्डनमें गुलमहोरके पेड़के नीचे खड़ी थी वो. जीवनके पचास वर्षकी आयुको पार करनेके बाद भी वो खूबसूरत लग रही थी. उसका शरीर थोडासा भर गया था पर उससे तो ज्यादा सुन्दर और प्रभावशाली लग रही थी. खुले हुए घुंघराले गेसु, बड़ी बड़ी सुन्दर स्वप्निल कजरारी आँखें और आकर्षक देहयष्टि, नीले रंगकी शीफॉनकी साडीमे वो वाक़ईमें लाजवाब लग रही थी.
कैमेराकी ओर हाथ हिलाकर उसने बोलना शुरू किया.
“हेल्लो! (मुस्कुराकर) देखो तुम्हारी दुनियासे चले जानेके बाद भी मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूँ. अब मैं तुम्हारी दुनियाके सारे रिश्तोंसे परे हो चुकी हूँ. ”
उसे देखकर और सुनकर मेरी आँखें भर आई. मैंने स्पेस बार दबाकर विडियो पॉज किया. मेरी आँखे अब सावन भादों बरस रही थी. अब तक बाँध कर रखे हुए जज़्बात पलकोंकी बदलियोंसे बरसने लगे. मैं हाथमे ड्रिन्कका गॉब्लेट लेकर खिडकीके पास जाकर खड़ा रहा. बड़ा ही अजीब सा अहेसास था यह. सत्रह सालोंसे मैं उसे मिला नहीं था. अक्सर मैं उसे याद ज़रूर करता था पार कभी भी मैंने उसे मिलनेका प्रयास नहीं किया था. ना ही कभी उसने मुजसे मिलनेकी कोशिश की थी. उसके घरका लैंडलाइन नंबर वही का वही था, सिर्फ उसमे दो डिजिट बढ़ गए थे. शायद उसने मेरे फ़ोन का इंतज़ार किया होगा. वैसे तो एक दूसरेका मोबाइल नंबर पानाभी हमारे लिए कोई मुश्किल काम नहीं था. वास्तवमें हमारे बिच, या मेरे ओर ऑरनॉबके बिच कोई बाहरी मनमुटावभी नही हुआ था. इतने सालोंमे तीन चार बार मेरी और ऑरनॉबकी फोन पार बात हुई थी. वास्तवमें मेरे पास उसका और उसके पास मेरा मोबाइल नंबर था. पर मैंने कभी मन्दाकिनीका मोबाइल नंबर माँगा नहीं और नाही उसने सामनेसे देने की चेष्टा की. मेरे और मंदाकिनीके बीच एक दौरमें घनिष्ठता दोस्तीकी परिघिसे ज्यादा बढ़ चुकी थी लेकिन मुझे ये भी नहीं मालूम था कि ऑरनॉब उसके बारेमें जानताभी था या नहीं. वास्तवमे मन्दाकिनिकी दीवानगीने मुझे डरा दिया था. मैं नहीं चाहता था कि मेरी वजहसे उनके दाम्पत्य जीवनमे कोई दरार आये. फिरभी मुझे अंदर ही अंदर ये अहेसास था कि ऑरनॉब सब जानता था. इसी लिए मैंने उससे दूर चले जानेका फैसला किया था. सोचते सोचते मैंने सिगरेट जल कर एक लंबा कश लिया. तभी कमरेमे फ्रेंच परफ्यूम चैनल ५ कि महकका झोंका आया. और इस बार साथमे उसकी आवाज़भी सुनाई दी.
“यूँ मायूस होनेकी ज़रूरत नहीं है आकाश. मैं कभी तुमसे दूर नही हुई. और अब तो शायद आसानीसे तुम्हारे पास रहे सकती हूँ. कहते है कि प्रेतात्माको कोई बंधन नहीं होते.”
इसके बाद वो ठहाका मारकर हंसी.मुझे लगाके वो मेरे पीछे ही खड़ी है. मेरे मन पर एक अज्ञात भय छा गया. लेकिन तुरंत मैंने अपने आप पर काबू पा लिया और उसे देखनेके लिए पिछेकी ओर मुड़ा तो वहां कोई नहीं था. फिरभी उसके हंसनेकी आवाज़ आ रही थी. तभी मेरा ध्यान गया कि आवाज़ लैपटॉप से आ रही थी. मैंने मॉनिटरके स्क्रीन पार देखा कि वो अबभी खिलखिलाकर हंस रही थी. आवाज़का तर्क संगत कारन तो मिल गया लेकिन अब भी वो फ्रेंच परफ्यूम चैनल ५ कि खुश्बु कमरेमे छायी हुई थी. जिसका कोई तार्किक कारन मेरे पास नहीं था. क्या वो सचमुच अपने सूक्ष्म देहके साथ मेरे आसपास थी? मुझे याद था कि जब मैं लैपटॉपके पाससे उठा तब मैंने विडियो पॉज किया था. अब अचानक वो अपने आप कैसे प्ले हो गया? कोई जवाब नहीं था मेरे पास. जो भी हो, मैंने वापस लैपटॉपके सामने जाकर बैठा. उसकी हंसी थमी और उसने वापस अपना वक्तव्य आगे बढ़ाया.
” सॉरी आकाश. मैं तो यूँही मज़ाक कर रही थी. मुझे क्या मालुम मरने के बाद मेरा क्या होगा? लेकिन इतना ज़रूर कहूँगी कि मरनेके बाद अगर कोई ज़िन्दगी है, तो उसमे मैं तुम्हे औरभी ज़्यादा प्यार करुँगी. क्योंकि तब मैं तुम्हारे दोस्तकी बीवी बनकर तुम्हारे पास नहीं आउंगी पर तुम्हारी, सिर्फ तुम्हारी, प्रेम दीवानी बनकर तुम्हारे इर्दगिर्द मंडराती रहूंगी.” ठीक उसी वक्त कमरेमे एक बार फिर वही परफ्यूम कि महक छा गई. अब मुझे कोई शक नहीं था कि वो मेरे कमरेमे उस समय मौजूद थी. लेकिन मुझे कोई भय नहीं लग रहाथा बल्कि मुझे पहले जैसा लग रहा था जब वो मेरे सामने बैठ कर बात करती थी. मेरे सामने मॉनिटरके स्क्रीन पर वो बोल रही थी.
“याद है आकाश कि तुमने मुझे एक दिन कहा था कि तुम कभी मेरे जीवन पर आधारित किताब लिखोगे? अब मैं चाहती हूँ कि तुम वो लिखो. तुम मेरे मनकी स्थितिको अच्छी तरहसे जानते हो और समझतेभी हो. हमारे जीवनको शायद तुम्हारे जितना कोई नहीं जानता. सबसे अव्वल बात तो ये है कि तुम मेरी भावनाओंको बहोत अच्छी तरहसे समजते हो और महसूस कर सकते हो. (थोड़ा सा मुस्कुरा कर उसने कहा) जानते हो कि औरते तुम्हारी दीवानी क्यों हो जाती है? इसलिए नहीं कि तुम बहोत हैंडसम हो. पर इसलिए कि तुम उनकी भावनाओंको समझ पाते हो और उन भावनाओंका सन्मानभी करते हो. इसलिए कि तुम कड़वी बात भी बहोत प्यारसे बता देते हो. तुम्हारी यही खासियत तुम्हारे लिए औरतोंके दिलमे एक विशेष स्थान पैदा कर देती है.”
उसका अंदाज़े बयाँ हमेशाकी तरह बेबाक था. मैं उसे आगे सुनाता रहा.
“मेरे प्यारे दोस्त, हो सके तो तुम आजसे ही मेरी कहानी लिखना शुरू करो. हमारी पहेली मुलाकातके बारेमे ज़रूर लिखना. तुम सब कुछ लिख सकते हो. और जब तुम जंगलमे बितायी उस ख़ास रातके बारेमे लिख लो तब दूसरा विडियो देखना. यदि तुम्हारे शूटिंग शेड्यूल हो तो तुम इस कहानी को थोड़ा थोड़ा करके लिखना. यदि इस सारी कहानीको तुम ईसी घरमे बैठ कर लिख सको तो मुझे ज्यादा ख़ुशी होगी.
तुम्हारे लिखने के दौरान रिलैक्स होनेके लिए जितना मेरी समझमें आया मैंने इंतज़ाम कर दिया है. इसी लैपटॉपके डी ड्राइवमें “सुनहरे गीत” नामक फोल्डर है जिसमे मैंने तुम्हारी पसंदके पुराने गाने लोड कर रखे है. यदि किसी ओर चीज़की आवश्यकता हो तो धम्मा दादाको बोल देना. और हाँ, अणिमा और बच्चोंको मेरा ढेर सारा प्यार देना. अणिमासे कहनाकि उससे बहेतर बीवी तुम्हे इस जनममें तो नहीं मिल सकती थी.” उसके बाद एक हल्कीसी फ्लाइंग किस देकर प्यारी सी मुस्कान बिखेरती हुई वो लैपटॉपके स्क्रीन से अदृश्य हो गई.
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