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तुम्हारी कहानी : ६

The Show Must Go On
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6 Chapter Jagran Junction

तुम्हारी कहानी : ६

“देखो आकाश, इससे पहले कि तुम मंदाकिनीसे मिलो उसके बारेमे मैं तुम्हे कुछ बातें बता देना चाहता हूँ. उसकी मनोदशा सामान्य नहीं है. यूँतो वह बहोत ही काबिल अफसर है. अपने काममे वो लाजवाब है. पर पर्सनल लाइफमें कभी कभी उसका व्यवहार अजीब सा हो जाता है. अपने आप पर उसका कोई कण्ट्रोल नहीं रहता. चीखती चिल्लाती है और कभी कभी हिंसक भी हो जाती है.” अरनोबने मुझे बताया था.
उसकी बात सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गया.

“तुम कहना क्या चाहते हो?” मैंने पूछा.

“यही कि समटाइम्स शी बिहेव्ज़ लाइक आ पैरानॉयड. एक तरह के पागलपन का दौरा पड़ता है उसे.” अरनोबने उत्तर दिया.

उसकी बात सुनकर मैं गहरी सोचमे पड़ गया. इतनी पढ़ी लिखी और उच्च पद पर आसीन युवा महिलाका बर्ताव ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसा क्या हो सकता है उसके जीवनमे जिससे उसकी ये हालत हुई?
“क्या मन्दाकिनिका बचपन संघर्षयुक्त था?” मैंने पूछा.
“नही! बड़े लाडप्यारसे पली है वो. उसके दादा ज़मींदार थे और पिता आर्मी के बड़े अफसर.” अरनॉबने बताया.
“बचपनसे ही उसने पैसा और सत्ता देखे है. पश्चिमी रहनसहन तो उनके परिवारने उसके परदादाजीके समयसे अपना लिए थे.अंग्रेजी शिक्षा उनके परिवारमे तबसे सामान्य थी उनके परिवारकी महिलाएं अत्यंत पढ़ी लिखी मानी जाती थी. उसकी माताजी एक कवयत्री थी और नानाजी संगीतकार.” अरनॉबने आगे बताते हुए कहा, “वास्तवमे उसने अपने जीवनमे संघर्ष कभी भी नही देखा. बचपनसे ही उसने जो चाहा वो उसे मिलता रहा. फिरभी शादीके तीसरे सालसे ही उसके अंदर चिड़चिड़ापन आने लगा जो धीरे धीरे बढ़ता ही गया. यहां तक की पिछले दो साल से वो हिंसक होने लगी है.”
उसकी बात सुनकर मैं सोचमे पड़ गया. जैसाकि अरनोबने बताया था उनकी शादी उनकी अपनी पसन्दसे हुई थी. पहले दोस्ती, फिर महोब्बत और फिर शादी. लेकिन शादीके बाद सब बदलने लगा. मैं अरनोबकी कही सब बातें याद करके मंदाकिनीके बदले हुए व्यवहारके बारेमे सोचने लगा. क्या उसका व्यवहार बदला था या उसकी मनोस्थिति? उसने उसकी बात समाप्त की उसके बाद भी मैं ईन सवालोंके जवाब नहीं ढूंढ पाया क्योंकि मेरे मनमे विचारोंकी श्रृंखला निरन्तर चल रही थी. अरनॉब भी खामोश हो गया. इससे पहले शायद उसने अपनी निजी ज़िन्दगी और जज़्बातके बारेमे किसीके सामने इतना खुलकर नहीं बोला था. वो जिस स्थान पर बैठा था वहां भावुक होना और अपनी निजी जिंदगीकी समस्याओंकी किसीसे चर्चा करना दुर्बलता साबित हो सकती थी. इसीलिए शायद मैं ही उसका एक मात्र इतना करीबी दोस्त था. उसकी स्थिति मैं समझ सकता था क्योंकि मैं खुद प्रसिद्धिकी ऐसी रोशनीमे बैठा था जहां हर हालातमें मुझे अपने चहरे पर मुस्कुराहट रखनी पड़ती थी. लेखन और दिग्दर्शनके मेरे व्यवसायने मुजमे किसी भी व्यक्तिके व्यवहार और वक्तव्यकी समीक्षा करके उसके पीछे रहे कारण और परिस्थितिका अंदाज़ा लगानेकी आदत डाल दी थी.
हम दोनों खामोश थे. बन्द शीशे और एयर कंडीशनरकी सर्द हवा कारके अंदरकी खामोशीको औरभी गहरा बना रहे थे यदाकदा अरनोबकी कारका साईरन बज उठता और ट्रैफिक का किसीभी प्रकारका गतिरोध दूर हो जाता था. शहरके व्यस्त रास्तोंसे गुज़रते हुए कही कही सामने वाले या बगलसे गुज़रने वाले वाहन पर पड़नेवाला लाल प्रकाश इस बातकी गवाही देता था कि मैं जिलेके सबसे शक्तिशाली अफसरके साथ उसके अधिकृत वाहनमे सफर कर रहा हूँ. कारमे लगे वायरलेस सेट पर निरन्तर सूचनाओंका आदान प्रदान सुनाई देता था जोकि अधिकाँश पुलिस डिपार्टमेंटका अंदरूनी वार्तालाप था. ड्राइवरने वोल्युम बहोत ही धीमा रखा था लेकिन मुझे यक़ीन था कि आँख बंद करके बैठे हुए अरनॉबका अर्ध जाग्रत मन उस वार्तालापको आदतन ग्रहण कर उसकी समीक्षा कर रहा था. जिल्लेका कर्ताधर्ता अधिकारी कितना सतर्क और कार्यदक्ष होना चाहिए उसकी अरनॉब एक मिसाल था. मेरे राज नगर निवास के दौरान मैंने हमेशा अरनोबकी कार्यदक्षताकी प्रशंसा ही सुनी थी. बहोत ही युवा वयमें उसने मात्र प्रशासनके ही नहीं पर सियासतके गुर भी सिख लिए थे. इसीलिए बहोत ही काम समयमें उसने राज नगर को विकासकी दौड़मे राज्यके अधिकतर ज़िल्लोंसे आगे रख दिया था.अपनी कार्यदक्षताके कारण वो मुख्यमंत्रीका चाहिता अधिकारी बन गया था.
सोचते सोचते कब हम अरनोबके निवासस्थान पर पहोंच गए उसका पता ही नही चला. पुरे रास्तेमें हम दोनों खामोश रहे, अपने अपने विचारोंमे खोये हुए. जब कार पोर्चमे रुकी तब ही मेरी विचार श्रृंखला टूटी. कारके रुकते ही एक गार्डने आकर अरनोबकी ओरका दरवाज़ा खोला. अरनोबके कारसे बाहर आते ही वहां मौजूद सब संरक्षक गणने सावधानकी स्थितिमे आकर सेल्यूट किया. अरनोबने सर हिलाकर उनका अभिवादन किया और फ़टाफ़ट मैरून ग्रेनाइटके बने पायदान चढ़ गया. मैं भी उसके पीछे पीछे अंदर गया. सामने खड़े धम्मा दादाने हाथ जोड़कर अभिवादन किया. मैं फॉयरमे अपने जुटे खोलने रुका. अरनॉब अंदर जा चुका था. अभी मैं अंदर जाने के लिए कदम उठा ही रहा था कि मंदाकिनीकी गुस्सेसे भरी चिल्लाती हुई आवाज़ सुनाई दी. वो अंग्रेजीमे अविरत गालियां बोल रही थी. मेरे कदम रुक गए. उसके अस्खलित वाक् प्रवाहमे अरनोबके बोलने की कही कोई गुंजाइश नहीं थी. तभी अंदरसे कांचके टूटनेके आवाज़ आयी. ईस प्रकारका स्वागत स्वाभाविक रूप से मेरे लिए सर्वथा अनपेक्षित था. एक क्षणके लिए मैंने सोचा कि मुझे यहींसे लौट जाना चाहिए. बहादुर मेरी कार लेकर हमारे पीछे पीछे ही आ चुका था. पर तभी मुझे अरनॉबकी बात याद आयी और सोचा की यदि मंदाकिनीको पागलपनका दौरा पड़ा है तो मुझे अरनॉबके साथ ही रहना चाहिए. यह सोचकर मैंने अपने कदम बढाए.

***


आज बरसों बाद जब उस क्षणके बारेमे लिखने जा रहाहूं जहांसे मेरे जीवनके एक अति नाटकीय मोड़का आरम्भ हुआ तो आज भी उतना ही रोमांच हो रहा है जितना उन क्षणोंमें हुआ था. ईस प्रकारका स्वागत बहोत ही कम लोगोंके नसीब में होता है. ख़ास तौर पर आप जब प्रसिद्ध और सफल इंसान हो और बतौर खास महेमान किसी संपन्न और शक्तिशाली व्यक्तिके घर पहलीबार रात्रि भोजके लिए गए हो तब तो ईस प्रकारका स्वागत सर्वथा अनपेक्षित होता है. खैर, मैं शायद उन चंद खुश नसीबोंमेसे हूँ जिन्हें ऐसा स्वागत नसीब हुआ हो. आइये अब हम अब मूल कहानीको आगे बढ़ाते है.

***


जैसेही मैंने ड्राइंगरूममें कदम रखा कांचकी एक प्लेट हवामे तैरती हुई मेरी ओर आई. त्वरा से मैंने अपने आपको झुका लिया और वह उड़न तश्तरी मेरे सरके उपरसे गुज़रती हुई पीछेकी दीवारसे टकराई और चूर हो गई. मैंने ईश्वरका शुक्रिया अदा किया कि बचपनमे मुझे क्रिकेट खेलनेके मौके मिले थे जिसने मुझे तीव्र गतिसे आते हुए बाउंसर को डक करना सिखाया था. बिना हेलमेटके सर बचानेका यह इल्म यहां काम आ गया वर्ना मन्दाकिनीकी उड़न तश्तरी मुझे अवश्य ही अस्पतालमें पहुंचानेमें कामयाब रहती. मैंने अरनोबकी ओर देखा. उसके चहेरे पर शर्म और बेबसीके भाव थे. मैं उसे ज्यादा शर्मिंदा करना नहीं चाहता था ईस लिए मैंने तुरंत नज़र घुमाई और उस उड़न तश्तरीके लॉन्चिंग पेड़ अर्थात मन्दाकिनीकी ओर देखा. वो गुस्सेमे तिलमिलाती कड़ी थी. उसने ब्लू डेनीमकी बहोत ही शॉर्ट पैंट और काली जर्सी पहन रखी थी. मुझे समजते देर नहीं लगी कि यह उसका विद्रोहका लिबास है. क्योंकि उसकी गोरी जंघाएँ आधीसे अधिक उजागर हो रही थी और टाइट जर्सी उसकी पतली कमर और उन्नत उरोजोंके आकार चित्ताकर्षक रूपसे प्रस्तुत कर रही थी. पूरब या पश्चिम, किसी भी सभ्यताके हिसाबसे समाजके उच्च स्थान पर आसीन मेज़बान महोतरमा अपने घर दावतपे आनेवाले किसी ख़ास मेहमानका स्वागत ऐसी वेषभूषामें नहीं करती. और यक़ीनन यह शिष्टाचार मंदाकिनी अच्छी तरह जानती थी. ईस प्रकारके परिधानसे उसने अपने पतिको स्पष्ट रूपसे संदेस दिया था कि मुझे तुम्हारे या तुम्हारे दोस्तकी कोई परवाह नहीं. मैंने भी तय कर लीया कि उसका यह खेल मैं भी बखूबी उसके साथ खेलूंगा.

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