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तुम्हारी कहानी : १०

The Show Must Go On
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10 Chapter Jagran Junction

तुम्हारी कहानी : १०


[प्रकरण ९ के अन्तमे आपने पढ़ा : “आकाश, न जाने क्यों मैं तुम पर बहोत भरोसा करने लगी हूँ. मैं कभी तुम्हारे लिए समस्या खड़ी नहीं करुँगी पर एक दोस्त के रूपमें मुझे तुम्हारा साथ चाहिए.”

“तुम मुझपर भरोसा कर सकती हो मन्नो.” अनायास मैने उसे मन्नो कहकर पुकारा. उसकी आँखें चमक उठी और होठों पर मुस्कराहट आ गई.

“तो चलो हम चाय पीते है.” उसने कहा. मैंने देखा की धम्मा दादा बैकयार्डमें बने शेडक़े नीचे टेबल पर चाय का ट्रे रख रहे थे. हम उस तरफ चल पड़े. चलते चलते मैं सोच रहा था की कोई न कोई ऐसी बात है जो मन्दाकिनीको परेशान कर रही है. लेकिन ऐसा क्या हो सकता है? मै ये भी समझ रहा था कि ये बात घरेलु नहीं है. लेकिन जैसाकि मैं जानता था वो खुद बहोत ही शक्तिशाली पद पर आसीन अधिकारी थी और उसका पति भी जिल्लेका सबसे शक्तिशाली अधिकारी था. हालांकि मन्दाकिनी वापस पहलेकी तरह शरारत पर उतर आई थी. उसके साथ मैं हँसते हुए जाकर चायके टेबलके पास पहुंचा लेकिन मेरा मन काफी कुछ सोच रहा था. अक्सर अखबारोंमें और टेलीविज़न पर जंगलमें होनेवाले गुनाहोंके बारे में पढ़ा और देखा था. क्या कोई ऐसी बात थी जो उसे परेशान कर रही थी? सोचते सोचते मैं उसके साथ चाय पीने लगा.] आगे पढ़िए …
चाय पीते पीते यूँही इधर उधरकी बातें हमारे बीच होती रही. मैं मन ही मन सोच रहा था कि ज़रूर कोई ऐसी बात है जिससे वो काफी परेशान है लेकिन मुजसे छीपा रही है. शायद यह परेशानी उसके व्यावसायिक जीवन से सम्बंधित है. मुझे ये भी समझमे आने लगा था कि उसके और अरनॉबके बीच सबकुछ ठीक नहीं है. लेकिन मैं इन बातोंको मेरी ओरसे छेड़ना नही चाहता था. देर शाम अरनॉब दिल्लीसे वापस आया. उसका दौरा काफी हद तक सफल रहा था. यहां इन दोनों के साथ रहते रहते मेरी समझमें आ रहा था कि उच्च पद पर आसीन सरकारी अफसरोंका जीवन कितनी ज़िम्मेदारियोंसे भरा और व्यस्त होता है. दिल्लीसे लौटनेके बाद तुरंत अर्नोब अपने घरमे बने कार्यालयमें काममे लग गया. उसका पर्सनल असिस्टेंट गोवर्धन दास एयरपोर्टसे ही उसके साथ हो लिया था. दूसरे दिन सुबहमें ही अरनोबको राजधानी जा कर मुख्य मंत्रीजी को पूरा ब्यौरा देना था. रात्रिक भोजन भी उन दोनोने वही कार्यालय कक्षमे किया. रात्रिके तकरीबन दो बजे तक अरनॉब काम करता रहा.

पिछली रातकी तरह आज भी मैंने और मंदाकिनीने डिनर वही बेकयार्डमें लिया. अबकी बार मुजसे पूछे बगैरहि उसने डिनर का प्रबंध वहां कर दिया था. जब मैंने उससे कहाकि मैं भी उसी जगह पर डिनर लेना चाहता था तब वो बोली कि उसे मालुम था कि मुझे वो जगह ही ज्यादा पसंद आएगी. वास्तवमे उसको भी डिनरके लिए वही जगह पसंद थी. डिनरके बाद मैंने मन्दाकिनिकी अणिमासे बात फ़ोन पर बात करवाई. दो मिनटमें ही वो दोनों जैसे पक्की सहेलिया बन गई. दोनोंने काफी बातें क़ी. उसके बाद मंदाकिनीने मुझे फ़ोन देते हुए कहा कि उसकी और अणिमाकी खूब जमेगी. जब मैंने अणिमासे बातचीत शुरूकी तो उसने मुजसे मज़ाकिया अंदाजमें कहा,
“बी कैरफूल. वो मेरे अश्वमेधके अश्वको बाँध सकती है.”
अणिमा मुझे मजाकमें अश्वमेधका अश्व कहती थी. एक बार मैंने उसे मज़ाक ही मजाकमें पूछा था कि मेरे इर्दगिर्द हमेशा बहोत सारी ख़ूबसूरत लड़कियां घूमती रहती है तो उसे डर नहीं लगता? जवाबमे उसने कहा था,
“आकाश, तुम मेरे अश्वमेधके अश्व हो. अश्वमेधका अश्व समस्त भू मंडल पर अपनी इच्छानुसार विचरण करता है लेकिन कोई उसे बाँध कर नहीं रख सकता. वैसे ही तुम भले ही अपनी इच्छानुसार सुंदरियों के बीचमे स्वैर विहार करे रहो लेकिन तुम्हे बांधने की ताकत मात्र मुझमे है. कोई और तुम्हे नहीं बाँध सकता ये मैं जानती हूँ. मैं कभी तुम पर कोई बंदिश नहीं डालूंगी क्योंकि मुझे मेरे प्रेम पर भरोसा है. मैं जानती हूँ कि तुम ग्लैमर की दुनियामे जीते हो. तुम्हारे जिस आकर्षणने मुझे दीवाना किया वो दूसरी स्त्रीयोंको भी आकर्षीत करेगा. लेकिन तुम मुझे बहोत प्यार करते हो वो भी मैं जानती हु. तुम्हारे जीवनमे अन्य कोई स्त्री मेरा स्थान नहीं ले सकती. मैं तुम्हारे जैसे कल्पनाशील कलाकारके पंख काटनेका अपराध कभी नहीं करुँगी.”
लेकिन मंदाकिनीसे पहेली बार फ़ोन पर बात करते ही उसने जो महसूस किया वो उसने अपने अंदाजमें मुझे बता दिया.
“बी कैरफूल. वो मेरे अश्वमेधके अश्वको बाँध सकती है.” मजाकमें कहे हुए इन शब्दों के पीछे उसके मनमे पनपता हुआ भय मुझे महसूस हुआ. वास्तवमे मैं खुद इस प्रकारका एक भय अपने अपने अंदर महसूस कर रहा था. हमारी शादीके बाद मैं पहलीबार ऐसी किसी महिलासे मिला था जिसके अंदर मुझे निरंतर अपनी ओर आकर्षीत करनेकी क्षमता थी. मैंने कभी मेरा आशिकाना मिजाज़ छिपानेकी कोशिश नहीं की थी. अणिमा सिर्फ मेरी पत्नी ही नहीं पर एक बहेतरीन दोस्त भी थी. वो मेरी फ़ितरत अच्छी तरहसे जानती थी इसीलिए उसने मुझे अश्वमेध के अश्वकी उपमा दी थी. एक ऐसा अश्व जो अपनी इच्छानुसार विचरण करता है पर बंधता कही नहीं. आज चन्द मिनटोंकी बातचीतसे उसने ये अंदाज़ा लगा लिया था कि मंदाकिनी मुझे बांधनेका एक हद तक सफल प्रयास कर सकती है. मज़ाक ही मजाकमें उसके द्वारा कही गई बातमें मुझे चेतावनीका अहेसास हुआ. मज़ाक मजाकमें भी मैंने उसकी बात को नकारनेकी चेष्टा नहीं की. अणिमामें किसीको भी पहेचाननेकी गज़बकी क्षमता थी.
जिस दिन मैंने और अणिमाने शादी करनेका निर्णय लिया उसी दिन अणिमाने मुझसे स्पष्टरूपसे कहा था, “आकाश, मैं जानती हूँ कि तुम सिर्फ मुझसे बंधकर नहीं रहे सकते. मैं ये भी जानती हूँ कि तुम्हारे चार्मके आगे टिक पाना बहोत ही मुश्किल है. तुम्हारे जीवनमे बहोतसी औरतें आएँगी और जाएंगी. मेरा उससे कोई वास्ता नहीं. तुम्हारे इसी आशिकाना मिजाज़ पर मैं मर मिटी हूँ. मुझे तुम्हारे प्यार पर पूरा ऐतबार है पर मैं ये भी जानती हूँ कि तुम सिर्फ मेरे होकर नहीं रहे सकते. आज तुम अपने करियरके लिए संघर्ष कर रहे हो और बहोत ही जल्द तुम सफल भी हो जाओगे. मैं कभी भी किसीभी बात में तुम्हे रोकनेकी कोशिश नहीं करुँगी क्योंकि तुम्हारा तुम होना ही तुम्हे बेमिसाल बनाता है.”
और हमारी शादीके बाद उसने कभी भी मुझे बांधनेकी कोशिश नहीं की थी. आज बारह साल के बाद पहेली बार उसने मुझे आनेवाले खतरेसे आगाह किया था. वो भी सिर्फ एक बार मंदाकिनीसे फ़ोन पर बात करके. उस वक़्ततो मैं उसकी बात हँसके टाल गया.लेकिन मेरे अंदर खलबली मच गयी. अणिमासे बात ख़तम करके मैंने टेलेफोनेका रिसीवर क्रेडल पर रखा और मन्दाकिनिकी ओर देखा. पहले वो मुस्कुराई और फिर ठहाका मारकर हंस पड़ी.
“क्या कहा अणिमाने? बचके रहना?” उसने फिरसे ठहाका मारकर हँसते हुए कहा, “डोंट ट्राय टु कवर ईट. छिपानेके कोशिश मत करो. वो तुम्हारी पत्नी है और इंटेलीजेंट है.”

अचानक वो मेरे बहोत करीब आ गयी. इतनी करीब की मैं उसकी गर्म सांसोंको अपने चहेरेसे टकराते हुए महसूस कर रहा था.उसकी आवाज़में मदहोशी और शोखी घुल गए जब उसने मुझसे कहा,
“शी वैरी वेल नोज़ ध लीथल इम्पैक्ट ऑफ़ योर चार्म्स. तुम्हारे दिलकश अंदाज़का जानलेवा असर वो अच्छी तरहसे जानती है.”
उसके इस बेबाक अंदाज़ने मुझे हिला दिया. अणिमाकी बात सही थी. मंदाकिनीकी बेबाकी और निर्भयता मुझे हदसे ज्यादा आकर्षीत कर रहे थे. हालांकि वो मेरे अज़ीज़ दोस्तकी पत्नी थी और मैं इस बात को लेकर बहोत ही सचेत था कि मेरा उसके साथ एक हद से ज्यादा करीबी रिश्ता न हो. पर एक स्त्री और पुरुषका करीबी रिश्ता किस वक़्त मर्यादाओंके बाँध तोड़ देगा ये कोई नहीं कहे सकता. और मंदाकिनी जज़्बातोंका एक ऐसा सैलाब थी जिसका उफान कभी भी नैतिकताकी दीवारको ढहा सकता था. उसकी मस्ती भरी निगाहोंसे निगाहें मिलाकर मैंने कहा,
“तारीफ़ करूँ तो किसकी करूँ? अंदाज़ ए क़त्ल की या कातिलकी उस मासूमियतकी जो क़त्ल करके शिकारको शिकारी करार दे रही है?”

(क्रमश:)


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