Menu
blogid : 15226 postid : 1299755

तुम्हारी कहानी : १२

The Show Must Go On
The Show Must Go On
  • 13 Posts
  • 6 Comments

12 Chapter Jagran Junction

तुम्हारी कहानी : 12

[प्रकरण 11 के अंत में आपने पढ़ा: मैं खामोशीसे उसे देखता और सुनता रहा. होठों पर मुस्कराहट और आंखोंमें दर्दके साथ उसने मेरी और देखा और फिर एक ही घूंटमे वो अपने ग्लासमे बची सारी वाइन पी गयी, धम्मा दादाको आवाज़ लगाकर उसने उन्हें बाकी बची वाइन लाने को कहा. वाइनकी बोतल आते ही उसने मेरी और देखा तो मैंने उसे अपना गिलास दिखाया जो आधे से भी ज्यादा भरा हुआ था. उसने दोबारा अपना ग्लास पूरा भरा और मेरी और देखकर बोली,

“देखो आकाश, तुम्हारी दोस्त सिर्फ पागल ही नहीं, पर शराबी भी है.”:

धम्मा दादाने मेरी और देखा तो मैंने उनको जानेके लिए इशारा किया. मेरे लिए बड़ी ही विचित्र परिस्थिति खड़ी हो रही थी. मन्दाकिनिकी भावनाओंमे वाइनका हल्का सा सुरूर भी घुलने लगा था. मेरे मनमे अब भी अणिमाके चेतावनी भरे शब्द गूंज रहे थे. मैंने मन्दाकिनिकी ओर देखा. वो जैसे अपने आपमें खोने लगी थी. अपनी आँखें बंद कर वो कुछ गुनगुना रही थी. उसके चहेरे पर बार बार हल्कीसी मुस्कान आ जाती थी. ऐसा लगता था जैसे वो अपने मन ही मन किसीसे बात कर रही थी. क्या सचमुच उसे पागलपनका दौरा पड़ता होगा? क्या वो सचमुच पैरानॉइड है? या वो मेरे प्रेम में दीवानी हो रही है? मैं सोचता रहा.] आगे पढ़िए…

वो जैसे किसी दूसरी दुनियामे खो गई थी. ईस परिस्थितिमे मुझे खामोश रहना ही उचित लगा. सोचते सोचते उसके चहेरे पर हलकी सी मुस्कराहट आने लगी. वो अपनी मस्तीमे जैसे डूब रही थी. वो जैसे एक ऐसी व्यक्तिमें तब्दील हो रही थी जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा हो. उसने मेरी ओर देखा ओर मुस्कुराई. उसकी आंखोंमें ओर मुस्कराहटमें सोलह सत्रह सालकी किसी मुग्धा जैसा अल्हड़पन दिख रहा था. वो एक कोनेमे रहे म्यूजिक सिस्टमके पास गई और पुराने गानोंका कैसेट लगाया. हिंदी सिनेमाके साथ और सत्तरके दशकके सुवर्ण युगके सुरीले गाने गूंज उठे. गानोंके साथ साथ वो भी कभी कभार गुनगुना लेती थी और कभी कभी हल्का सा डांस भी कर लेती थी. मुझे भी वो गाने पसंद थे. बतौर फिल्म लेखक और निर्देशक मुझे अक्सर ऐसा होता था की काश मैं तीस साल जल्दी पैदा हुआ होता और उन महान कलाकारोंके साथ काम करनेका मुझे मौका मिला होता. उन फिल्मोकी कहानियां, संगीत, गीत, गायक, अदाकारी सबकुछ हृदयको छूने वाला होता था. म्यूजिक सिस्टम पर बज रहे गीत मुझे अपने ख्यालोँकी दुनियामे ले गए. मेरे दिमागमे मेरी फिल्मकी पटकथा चलने लगी. जो ढांचा मेरे मनमे बैठा हुआ था उसमे कुछ तब्दीलियां मुझे सूझने लगी. ऐसा ही होता है जब पटकथा और संवाद लिखते है तब. निरंतर कोई न कोई सुधारकी आवश्यकता मनमे आती है. कई बार तो शूटिंग के दौरान नए विचार आते है.

मैं अपने विचारोंमे खोया हुआ था और मन्दाकिनी अपनी मस्ती में. तभी अपना काम निपटाके अरनॉब वहां आया. मैंने मुस्कुराकर उसका स्वागत किया और वाइनकी बोतलकी ओर इशारा किया. उसने भी मुस्कुराकर सर हिलाया ओर वहां टेबल पर पड़े खली ग्लासमे थोड़ीसी वाइन भरी. वो काफी थका हुआ लग रहा था. उसने देखाकी मन्दाकिनी किसी ओर दुनियामे खोयी हुई है तो उसके चहेरे पर हल्कीसी परेशानी झलक उठी. तभी ईस्वीसन 1962 में आई फिल्म “असली नकली” का लताजी का गाया गाना बज उठा.
“तेरा मेरा प्यार अमर, फिर क्यों मुझको लगता है डर…” बज उठा. हसरत जयपुरी साहबके दिलकश अल्फाज़को संगीतके जादूगर शंकर-जय किशन की बंदिशने चार चाँद लगा दिए थे. उस पर हृषिकेश मुखर्जी साहब जैसे दिग्दर्शक, देव आनंद ओर साधना जैसे अदाकार. हमेशा से ये मेरे पसंदीदा गीतोंमे से रहा है. मन्दाकिनीकी गानोंकी पसंद वाकई बहोत बढ़िया थी. जैसे ही ये गाना बजना शुरू हुआ वो बहोत भावुक होकर अरनोबकी ओर देखने लगी. मैंने अरनोबकी ओर देखा वो अपने खयालोमे उलझा हुआ था. वो थक हुआ भी था ओर आने वाले दिन उसे मुख्य मंत्रीजीसे मिलाना भी था. ईस परिस्थितिमे उसका विचारमग्न होना स्वाभाविक था. हसरतभरी निगाहोंसे उसे देखते हुए मन्दाकिनी उसके करीब आयी ओर अपना हाथ आगे कर उसे अपने साथ डान्स करने निमंत्रित किया. अरनॉब अपने विचारोंमे खोया हुआ था. मैंने हल्केसे उसका हाथ दबाकर उसकी विचार श्रंखला तोड़ी. उसने मन्दाकिनिकि ओर देखा. वो उसकी इच्छा समझ गया ओर उसने हल्कीसी बेरुखीसे कहा,

“नो, आई डोन्ट वोन्ट टू डान्स. ये कोई वक़्त है डान्स करने के लिए?”

उसके शब्दोंके साथ ही मन्दाकिनिका चहेरा रुआंसा हो गया. अचानक उसकी आंखोंमें पानी भर आया और होंठ कांपने लगे. उसकी ये हालात देख अरनॉब सतर्क हो गया. वो धीरे से बोला,

” ओह माय गॉड, शी इज़ ड्रंक.”

उसके ये शब्द मन्दाकिनीने सुन लिए. उसका शरीर कांपने लगा. उसकी आंखोंमें एक अजीब सी चमक आयी. उसके होंठ थरथराने लगे. ये देखकर मेरा मन व्यथा से भर गया. मेरा पढ़ा लिखा दोस्त अपनी पत्निका मन पढनेमें नाकाम रहा. उसने भी मन्दाकिनीमे आये बदलावको देखा. वो थोड़ा चिंतित हो गया. उसके मुंहसे निकल गया,

“ओह! इसे फिरसे दौरा पड़ रहा है. मुझे जाकर दवाई लानी पड़ेगी.”

वो खड़ा होने लगा तब मैंने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक और कहा की उसकी कोई ज़रुरत नहीं है. उसे सिर्फ अपनी पत्नीके साथ डान्स करना है. मेरी बात समझने के बजाय उसने थोड़ी तल्खीसे कहा कि “तुम ही क्यों नहीं डान्स कर लेते उसके साथ?”

उसकी बात सुनकर मुझे झटका लगा. मैंने उसे कहा कि मैं उसे डान्स करने के लिए कहे रहा हूँ, मैं खुद नहीं करना चाहता.

“लेकिन मैं तुम्हे कहे रहा हूँ. अगर तुम्हे ये लगता है कि उसके साथ डान्स करनेसे वो खुश होगी और उसकी स्थिति सामान्य हो जायेगी तो तुम्ही उसके साथ डान्स कर लो. मुझे कोई आपत्ति नहीं है. मैंतो सिर्फ उसी इलाजमे यकीं रख सकता हूँ जो क्वालिफाइड डोक्टर्सने प्रिस्क्राइब किया हो.” अरनॉबने थकी हुई आवाज़में कहा.

मन्दाकिनीने हमारा संवाद सुना. वो मेरे सामने आयी और उसने अपना हाथ मेरी और बढ़ाया. मैंने अरनोबकी ओर देखा. उसने मुस्कुराकर कहा,

“गो अहेड, मैं इतना दकियानूसी भी नहीं हूँ. सच कहूँ तो मैं बहोत थका हुआ हूँ ओर रिलैक्स होना चाहता हूँ.”

मैंने नज़ाकत से मन्दाकिनिका हाथ थामा ओर बीचमें जहाँ थोड़ी खाली जगह थी वहां हम गए. मन्दाकिनीने जाकर अपना पसंदीदा गाना कैसेट प्लेयर पर सेट किया. गाने के इंट्रो में बज रहे म्यूजिक के ले के साथ हलके से झूमती हुई वो मेरे पास आयी. गाना ईस्वीसन 1975 में आयी फिल्म “जूली” का था. दिग्दर्शक के.एस.सेतुमाधवन की ईस फिल्म कई बहेतरीन गाना आनंद बक्शी साहबने लिखा था ओर उसकी तर्ज बनायी थी राजेश रोशनजी ने. गाने का चित्रांकन रीता भादुड़ी पर किया गया था. गाना था “ये रातें नयी पुरानी, आते, आते जाते, कहती है कोई कहानी”

मेरे नज़दीक आकर उसने मेरा हाथ थामा ओर मैंने अपने दूसरे हाथ से उसकी कमरको नज़ाकतसे थामा. उसने अपना दूसरा हाथ मेरी बान्हक निचेसे ले जाकर मेरी पीठ पर रखा. डिस्कोके आगमनके बाद पश्चिमी सभ्यताका, विशेष रूपसे ब्रिटैनका, ये पारम्परिक कपल डान्स जो बॉल डान्स कहलाता है वो खो गया. दो मिनटमें ही मुझे ये अहेसास हो गया कि वो पैदाइशी डान्सर है. उसके अंदर ले ओर तालकी समझ कमालकी थी. डान्स करते समय वो मेरी आंखोंमें एकटक देख रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो सोलह बरसकी कोई मुग्धा हो ओर अपने बॉय फ्रेंड के साथ पहेली बार डान्स कर रही हो. मैंने अरनोबकी ओर देखा. वो हाथमे वाइनका ग्लास थामे आँखें बंद करके बैठा था. मैं समझ सकता था कि वो बहोत ही थका हुआ था, अचानक एक दिन के लिए दिल्ली जाकर आना ओर देर रात तक काम करना वाकई में थकाने वाला था. उपरसे उसे दूसरे दिन भी बहोत सारे काम करने थे. मैंने मन्दाकिनिकि आंखोंमें देखा. उसकी आंखोंमें सुरूरभी था ओर सुकून भी. अचानक मैंने अपनी पीठ पर उसकी उंगलियोंका दबाव महसूस किया. उसके होंठ कुछ कहनेको थरथराये पर कुछ कहे उससे पहले ही वो बेहोश हो गयी. इससे पहले कि उसका शरीर मेरे हाथ से सरककर ज़मीन पर गिरे, मैंने उसे अपने दोनों हाथोंसे थाम लिया.

क्रमश:

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh